हरियाणवी

सामण आयो
सामण आयो रंगलो कोई आई रे हरियाली तीज !
सास म्हारी प्यारी, गजब कीमारी,
मोकै तौ खंडा दै पीहर को, म्हारी लाड सासुला, प्यारी !
नईं आया थारा नाईं बामण, न माँ-जाया वीर,
राजा की रानी, जहार की रानी,
तो कै आड़ै ई घड़ा देँ पालणो,
म्हारी लाड बहुरिया प्यारी !
बिगर बुलाय धन जाएगी, घट जाएगो आदर-भाव,
राजा की रानी, जहार की रानी,
तू आड़ै ई सामण मान, मेरी लाड बहुरिया प्यारी !
ऊँचै तै चढ़कै देख रइ, तोकै दिवर कहूँ कै जेठ ?
सुघड़ खाती कै, बगड़ खाती कै,
चन्नण को घड़ लियो पालनो, जामें झूले सरिहल रानी ।
अजी आठ खुराड़ा नौ जना, कोई दग-दग जाएँ बन को
राजा की रानी, जहार की रानी,
ऊँची पाल तलायो की, जिते खड़रिया चन्नण को पेड़ ।
खाती आता देख कें कोई रोया छाती पाड़
बिरछ को पौदा, चन्नण को पौदा
डाल-डाल म्हारी काट लै, रै मत काटे जड़ से पेड़ ।
पहलो खुराड़ो मारियो, कोई निकसी दूध की धार ।
राजा की रानी, जहार की रानी,
एकासे दूजो दियो, जासे निकसी खूना धार ।
हरी-हरी चुरियाँ, गोरी-गोरी बहियाँ, कुन पै कियो सिंगार ।
राजा की रानी, जहार की रानी,
थारो राजधन मर गयी, रै धरती माँ गयो समाय !

भावार्थ

--'रंग भरा सावन आ गया है, हरियाली तीज आ रही है, ओ मेरी प्यारी सास ! ओ गजब की मारी सास !
मुझे मायके भेज दो, ओ मेरी प्यारी लाडली सास !'
--'न कोई नाई या न कोई ब्राह्मण तुझे लेने के लिए आया है, न तेरा सगा (माँ-जाया) भाई ही आया है, ऒ
राजा की रानी ! ओ जहार की रानी ! मैं तेरे लिए यहीं पालना बनवा देती हूँ, ओ मेरी लाडली प्यारी बहू ।
बिना बुलाए जाने से तेरा आदर-भाव घट जाएगा, ओ राजा की रानी ! ओ जहार की रानी ! तू इसे ही सावन के
उपहार मान, ओ मेरी प्यारी, लाडली बहू !
--'मैं ऊँची अटारी पर चढ़कर देख रही हूँ, तुझे देवर कहूँ या जेठ । ओ बढ़ई के सुघड़ बेटे, ओ बढ़ई के बड़े
बेटे ! जाओ, और जाकर चन्दन का एक पालना बना लाओ, जिसमें सरिहल रानी झूला झूलेगी ।

अजी देखो न, आठ कुल्हाड़े लेकर नौ आदमी बड़ी तेज़ी से जंगल की ओर जा रहे हैं, ओ राजा की रानी ! ऒ
जहार की रानी ! तालाब के ऊँचे तट पर चन्दन का वह पेड़ खड़ा है । जब उसने बढ़ई को अपनी ओर आते देखा
तो वह छाती फाड़ कर रोने लगा । वह पौधे जैसा पेड़, वह चन्दन का नन्हा पेड़ ।

--'मेरी एक-एक डाल काट लो पर मुझे जड़ से मत काटो ।'

--'जब कुल्हाड़े का पहला वार उस पर हुआ तो दूध की एक धार निकली, ओ राजा की रानी ! ओ जहार की
रानी ! जब उस पर कुल्हाड़े के दूसरा वार पड़ा तो रक्त की धारा निकलने लगी । ये गोरी-गोरी बाहों में हरी-हरी
चूड़ियाँ क्यों पहनी है तूने, क्यों यह सिंगार किया है तूने, ओ राजा की रानी ! ओ जहार की रानी ! तेरा राजधन
तो मर गया, री ! धरती में समा गया वो ।'

रूप तेरा

रूप तेरा चन्दा-सा खिल रिया,
बे ने घढ़ी बैठ के ठाली
कर तावल वार भाजरी,
जिसी दारू माँ आग लाग री
कलियाँदार घाघरी,
पतली कम्मर लचकत चाली ।

भावार्थ

--'तेरा रूप चांद की तरह खिला-खिला-सा है । लगता है, भगवान ने तुझे फ़ुरसत में बैठ कर गढ़ा है । यह
सुनकर युवती वहाँ से भाग कर दूर चली गई । ऎसा लगा जैसे शराब में आग लग गई हो । कलीदार लहंगा पहने
वह अपनी पतली कमर को लचकाती हुई वहाँ से चली गई ।'
मैं हूर परी बाँगर 


मैं हूर परी बाँगर की, मन्ने फली खा लई सांगर की!
मेरी के बूझे भरतार
म्हने छोड़ न जइए, अपना कपटी दिल समझइए
ओ भर बुरा बनियाँ से प्यार

भावार्थ

--' मैं बाँगर की हूर हूँ । एकदम परी सरीखी लगती हूँ । मैं सींगरे की फलियाँ खा- खा कर पली हूँ । प्रियतम,
आख़िर मुझे क्या समझते हो तुम ? मुझे छोड़ कर न जाओ, प्रिय। इस कपटी दिल को अपने समझाओ, प्रिय ।
ओ देखो न, तुम्हारे प्रति मेरे मन में बुरी तरह से प्यार जाग रहा है ।

मैं बैठ्या खेत कै डोले पै

मैं बैठ्या खेत कै डोले पै
कित जासै सिखर दुपहरै नै ?
मेरी जान कालजा खटकै
मत जाइए जी, जी भटकै
लिए देख चार घड़ी डटके
खसबू आरई फूल झारे मैं ।

भावार्थ
--'मैं खेत की मेंड़ पर बैठा हूँ, इस प्रखर दोपहरी में तू कहाँ जा रही है । प्रिय, मेरा हृदय धड़क रहा है । तू
मत जा । मेरा मन भटकता है । चार क्षण के लिए यहाँ खड़ी हो जा । देख, फूल झर रहे हैं और उनकी सुगन्ध
फैल रही है ।


भरती हो 
भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट !
याँ ऎसा रखते मध्यम बाना
मिलता पटिया पुराना ;
वाँ मिलते हैं फुलबूट ।
भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट !

भावार्थ
--'चलो भाइयो, चलो फ़ौज में भरती हो जाओ । देखो, तुम्हें लेने के लिए रंगरूट तुम्हारे दरवाज़े पर आए हैं ।
यहाँ तुम्हारा बाना(वेश)साधारण किस्म का है क्योंकि यहाँ तुम्हें पहनने को फटे-पुराने कपड़े ही मिलते हैं । जबकि
वहाँ फ़ौज में तुम्हें नए कपड़ों के साथ-साथ फुलबूट भी पहनने को मिलेंगे । चलो भाइयो, चलो । फ़ौज में भरती
हो जाओ ।'

पिया, भरती मैं हो लै ने

पिया, भरती मैं हो लै ने,
पट जा छत्तरीपन का तोल !
जरमन मैं जाकर लड़िए,
अपने माँ-बाप का नाँ करिए ।
ओ तोपों के आगे उड़िए,
अपनी छाती मैं दे खोल ।
पिया, भरती मैं हो लै ने,
पट जा छत्तरीपन का तोल !
भावार्थ
--'प्रियतम ! जाओ, फ़ौज में भरती हो जाओ । मुझे भी तो पता लगे कि तुम कितने बड़े क्षत्रिय हो । जाओ
और जाकर जर्मनों से लोहा लो । अपने मात-पिता का नाम उज्ज्वल करो । जाओ, तोपों के सामने जाकर अड़
जाओ । उनके सामने अपनी छाती खोल दो । फ़ौज में भरती हो जाओ, प्रियतम! ताकि यह मालूम हो जाए कि
तुम वास्तव में सच्चे क्षत्रिय हो ।'